मेवाड़ केसरी राणा प्रताप महान के जन्मदिन पर प्रतिमा का दुग्धाभिषेक एवं माल्यार्पण
9 मई 23 को बेलनगंज, आगरा में आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वाधान में सी. ए. आर. डी. सी के संयोजन के माध्यम से राष्ट्र जागरण का पर्व क्रांतितीर्थ की कड़ी में राष्ट्रपुरुष महाराणा प्रताप की जयंती पर मंगलवार सुबह यमुना किनारा स्थित महाराणा प्रताप प्रतिमा स्थल पर आयोजन किया गया। जहाँ पर मेवाड़ केसरी राणा प्रताप महान के जन्मदिन पर जमुना किनारे लगी विशाल प्रतिमा का दुग्धाभिषेक एवं माल्यार्पण किया गया। आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वाधान में सी. ए. आर. डी. सी के संयोजन के माध्यम से राष्ट्र जागरण का पर्व क्रांतितीर्थ की कड़ी में राष्ट्रपुरुष महाराणा प्रताप की जयंती पर मंगलवार सुबह यमुना किनारा स्थित महाराणा प्रताप प्रतिमा स्थल पर आयोजन किया गया।
क्रांतितीर्थ श्रंखला के मंडल समन्वयक और वरिष्ठ साहित्यकार राज बहादुर सिंह राज, संस्कार भारती के अखिल भारतीय संरक्षक बांकेलाल गौड़, हरिमोहन सिंह कोठिया, डॉ. शेषपाल सिंह 'शेष', आलोक आर्य, अर्पित चित्रांश, यतेंद्र सोलंकी, नंदकिशोर और दिलीप परिहार ने महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उनका सम्मान किया गया एवं महाराणा प्रताप के जयकारे लगाए।
इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते हुए मुख्य वक्ता और वरिष्ठ साहित्यकार हरिमोहन सिंह कोठिया ने कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर से महाराणा नहीं हारे थे, किंतु वामपंथी इतिहासकारों ने हिंदुओं का मनोबल गिराने के लिए लिखा कि महाराणा प्रताप हार गए। श्री कोठिया जी ने कहा कि सच्चाई तो यह है कि महाराणा प्रताप 30 वर्ष तक निरंतर अकबर से लड़ते रहे। अंतिम सांस तक स्वतंत्र रहे। आमने सामने के युद्ध में चेतक घोड़े पर सवार महाराणा ने मुगल सेना के छक्के छुड़ा दिए। वरिष्ठ कवि डॉ. शेष पाल सिंह शेष ने गीत के द्वारा राष्ट्रीय चेतना का भाग जगाया- "उलट-पुलट दे धरती अंबर, शुभ कर देश महान का। रग-रग रोम-रोम में तेरे, रक्त बह रहा राम का। चंद्रगुप्त, विक्रम, भोजों ने गौरव-मान बढ़ाया था। सीता- पद्मनि, दुर्गा माताओं ने तुझको जाया था। वीर शिवा राणा प्रताप ने निज सर्वस्व मिटाया था। झांसी की रानी लक्ष्मी ने अद्भुत शौर्य दिखाया था। जप माला का नहीं, किए जा जप पुरखों के नाम का.."
कार्यक्रम का संयोजन और संचालन करते हुए राज बहादुर सिंह राज ने क्रांति तीर्थ श्रंखला के उद्देश्य और महत्व पर भी प्रकाश डाला।