बलिदानियों को नमन कार्यक्रम के अंतर्गत संगोष्ठी का आयोजन औघड़नाथ मंदिर।
औघड़नाथ मंदिर, बलिदानियों को नमन कार्यक्रम के अंतर्गत संगोष्ठी का आयोजन।
क्रांति तीर्थ अमृत महोत्सव आयोजन समिति मेरठ प्रांत के द्वारा क्रांति दिवस के उपलक्ष में औघड़नाथ मंदिर सभागार में बलिदानियों को नमन कार्य के कार्यक्रम के अंतर्गत संगोष्ठी का आयोजन किया गया । जिसमें वक्ताओं ने क्रांतिकारी बलिदानियों के संघर्ष और उनकी गौरवगाथा को जन जन तक पहुंचाने की बात कही।
इस अवसर पर क्रांति नायक धनसिंह कोतवाल के वंशज हंसराज जी को भी सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में अपने उद्बोधन में वरिष्ठ प्रचारक और चिंतक जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष जी ने कहा क्रांति का ताना-बाना तो उसी दिन से शुरू हो गया था ,जिस दिन वास्कोडिगामा ने 15वीं शताब्दी में भारत में पहली बार कदम रखा और सशक्त प्रतिरोध का इतिहास साक्षी बना जिसकी परिणति 1857 की क्रांति और उससे पूर्व हुए विभिन्न विद्रोह के रूप में सामने आती है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों समेत सभी विदेशी शक्तियों ने भारत को गुलाम बनाने की खोज की मगर 1757 में प्लासी की लड़ाई से लेकर 1947 तक 190 वर्ष के संघर्ष में सिर्फ आधा भारत ही अंग्रेजों के नियंत्रण में हो सका ।उन्होंने कहा कि क्रांतिधारा मेरठ को इसका श्रेय जाता है, यहां से क्रांतिकारियों ने पूरे देश को ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध सशक्त प्रतिरोध के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति का मार्ग दिखाया। सैनिकों से पहले संपूर्ण समाज में हमें क्रांति के प्रति जागृति दिखाई पड़ती है ।चाहे वह काश्तकार हो अथवा दस्तकार यहां तक कि नगरवधुओं ने भी इसमें सहभागिता की मेरठ के बाद मेरठ की क्रांति ने पूरे विश्व के समक्ष एक नई अवधारणा रखी कि औपनिवेशिक शासन ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकता यहां से फूटी चिंगारी ने पूरे देश को अपने आंचल में समेटा, जिसमें सभी समाज लोगों की सहभागिता रही। उन्होंने कहा कि इतिहासकारों को अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक महत्वपूर्ण बलिदानी परंपरा से जुड़ी घटनाओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। उन्होंने वीर सावरकर, चापेकर बंधुओं के बलिदान और क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े वैज्ञानिकों और राजनेताओं का भी जिक्र किया। क्रांतितीर्थ समिति के सदस्य इतिहासकार प्रोफेसर देवेश चंद्र शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि ब्रिटिश हुकूमत का मंतव्य व्यापार करने के साथ-साथ धर्म का प्रचार प्रसार और धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन देना था और इसके लिए उन्होंने 50 वर्षों का समय निश्चित किया था। इस अवधि में भी पूरे भारत को ईसाई बना लेंगे और अगर अट्ठारह सत्तावन की क्रांति ना होती तो वास्तव में अंग्रेज अपने मंतव्य में सफल हो जाते। उन्होंने व्यापारिक उपनिवेशवाद के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक उपनिवेशवाद के विस्तार के लिए भारत में अनुदानो के माध्यम से धर्मांतरण कर समाज को तोड़ने का काम किया। मगर अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति में भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जगाई कि देश स्वतंत्र होकर ही रहा।
डॉ सुशील भाटी ने 1857 की क्रांति के स्वरूप का जिक्र किया कि किस तरह से यूरोसेंट्रिक इतिहासकारों ने इस क्रांति के स्वरूप और प्रभाव को मोड़ने का काम किया। और इसके बारे में भ्रांतियां फैलाई जबकि वास्तव में यह जनक्रांति थी जिसने इतिहास लेखन की दिशा और दशा को ही मोड़ दिया ।मेरठ से शुरू हुई इस क्रांति के प्रस्फुटन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रातों-रात हजारों की संख्या में क्रांतिकारी आसपास के ग्रामों से मेरठ के सदर क्षेत्र में एकत्रित चुके थे और कोतवाल धन सिंह ने अपनी अंग्रेजी फौज को स्पष्ट निर्देश दे रखे थे कि कोई भी सिपाही किसी भी क्रांतिकारी के साथ पुलिसिया व्यवहार नहीं करेगा। परिणाम स्वरूप क्रांतिकारियों ने विक्टोरिया पार्क जिसे अब भामाशाह पार्क कहा जाता है स्थित जेल को तोड़कर सैनिकों समेत लगभग 800 से अधिक बंदियों को छुड़ा लिया था। ब्रिटिश दस्तावेजों में ऐसे प्रमाण भी उपलब्ध हैं, जो ब्रिटिश राजशाही के विरुद्ध प्रतिरोध के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
क्रांतितीर्थ अमृत महोत्सव समिति के मीडिया प्रभारी इतिहासकार प्रोफेसर नवीन गुप्ता ने कहा कि बलिदानी क्रांतिकारियों को जाति समुदाय और जहबी दीवारों में कैद नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि उनका एकमात्र धर्म राष्ट्रधर्म था उनका लक्ष्य किसी वर्ग जाति समुदाय विशेष को आजाद कराना नहीं बल्कि पूरे भारत को ब्रितानिया हुकूमत की दासता से मुक्त कराना था इसलिए इससे क्रांतिधारा से फूटी क्रांति की चिंगारी ने वैश्विक घटना का स्वरूप ले लिया जब जब फ्रांस की 1789 और रूस की 1917 की क्रांतियों की चर्चा होगी निश्चित रूप से औपनिवेशिक साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिरोध की घटनाक्रम के रूप में अट्ठारह सौ सत्तावन कि इस महा क्रांति का भी इतिहास में उल्लेख होगा।
समिति के प्रांतीय संयोजक अश्वनी त्यागी जी ने इससे पूर्व क्रांति तीर्थ अमृत महोत्सव आयोजन समिति के द्वारा पूरे मेरठ प्रांत में होने वाले कार्यक्रमों की विस्तार से जानकारी दी तथा 35 सदस्य समिति की घोषणा भी की कार्यक्रम का शुभारंभ औघड़नाथ मंदिर में स्थित बलिदानों की स्मृति में बने स्मारक पर सामूहिक पुष्पांजलि कार्यक्रम से हुआ जिसके उपरांत अतिथियों और अध्यक्ष श्री हंसराज श्री आशुतोष जी, प्रोफेसर देवेश शर्मा, डॉ सुशील भाटी को विस्मृति प्रतीक चिन्ह तथा पटका भेंट कर सम्मानित किया गया। डॉ मीनाक्षी शास्त्री व राम-लखन पटेल ने काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में विशेष रूप से ब्रज भूषण गर्ग, वरुण अग्रवाल, डॉक्टर मयंक अग्रवाल, शहीद धन सिंह कोतवाल शोध संस्थान के चेयरमैन तस्वीर सिंह चपराना, बीपी त्यागी, बृजपाल सिंह चौहान, प्रोफेसर विघ्नेश त्यागी, शील वर्धन. डॉक्टर दिनेश, प्रोफेसर हरेंद्र सिंह, मनोज गिरी, स्वतंत्र संग्राम सेनानी परिषद मेरठ के महामंत्री कृष्ण पाल सिंह, सचिन भड़ाना, नरेश कुमार, राजेश त्यागी जी, कपिल धवन, रजनीश प्रकाश त्यागी, नरेंद्र कुमार चौहान, अशोक सोम का प्रमुख रूप से सहयोग रहा। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर नवीन गुप्ता ने किया।